वास्तुशास्त्र की आठ दिशाएं



वास्तु शास्त्र का अर्थ

वास्तु शास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो हमारे घर और कार्यस्थल पर समृद्धि, मानसिक शांति, खुशी और सामंजस्य दिलाने में मदद करता है. किसी जगह का वास्तु उस जगह के चारों ओर उपस्थित विभिन्न ऊर्जा को इस तरीके से कवच के रूप में पिरोता है कि व्यक्ति को मानसिक शांति और सद्भाव प्राप्त होता है. सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ पंचतत्व यानि पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से मिलकर बना होता है जिसे क्षिति-जल-पावक-गगन-समीरा भी कहा जाता है। भगवान भूमि, गगन, वायु, अग्नि और जल इन पंचमहाभूतों के महान कारक है। ये सब एक-दूसरे के पूरक घटक बनकर आपस में जुड़े हैं इनका संतुलन बिगड़ जाने पर भिन्न-भिन्न प्रकार के विकार उत्पन्न होने लग जाते हैं इन पंचमहाभूतों से एक सामंजस्य स्थापित करना ही वास्तुशास्त्र की विशेषता है। वास्तुशास्त्र वो है जो इन सभी तत्वों के बीच सामंजस्य बिठाकर हर तत्व को सही जगह पर लेकर मानव जीवन की परेशानियों और दुखों को समाप्त करता है। माना जाता है की घर की खुशियों की कुंजी वास्तु में छिपी होती है। वास्तु का सही अर्थ है "चारों दिशाओं से मिलने वाली ऊर्जा तरंगों का संतुलन"|


वास्तुअनुसार 8 दिशाओं के नाम

व महत्व

आज कल ज्यादातर घर वास्तु और फेंगशुई के नियमों को ध्यान में रखकर ही बनाये जाने लगे है वास्तु और फेंगशुई सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा पर ही काम करता है। वास्तु में 8 दिशाएं बताई गई हैं और ये सभी आठों दिशाओं का अपना खास महत्व और नियम है यदि घर में किसी दिशा में कोई गलत वस्तु रखी है तो इसका बुरा असर वहां रहने वाले लोगो पर पद सकता है. आइये जानते है ये 8 दिशाए कौन सी है और इन दिशाओं का अध्ययन कैसे किया जा सकता है.


पूर्व दिशा

जहाँ से सूरज उदय होता है उसे पूर्व दिशा कहा जाता है पूर्व दिशा के देवता इंद्र माने गये हैं। इस दिशा से सकारात्मक ऊर्जा आती है जिस कारण यहां घर का मुख्य दरवाजा बनाया जा सकता है। इस दिशा से घर में खुशियां आती है.


पश्चिम दिशा

जिस दिशा में सूर्य अस्त होता है या डूबता है उसे पश्चिम दिशा कहा जाता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण देव माने गए हैं। इस स्थान पर डायनिंग हॉल, सीढ़ियां या दर्पण लगाना भी बहुत शुभ होता है।


उत्तर दिशा

वास्तु अनुसार उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व धन के देवता कुबेर करते हैं। जिस कारण यहाँ पर नकद धन और मूल्यवान वस्तुएं रखना शुभ होता है.


दक्षिण दिशा

वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा को शुभ हीं माना जाता है इसे संकट का द्वार भी कहा जाता है। वास्तुअनुसार दक्षिण दिशा को यम की दिशा बताया गया है. यहां भारी सामान रखना चाहिए.


उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण)

उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा ईशान कोण और उत्तर-पूर्व दिशा कहलाती है उत्तर-पूर्व दिशा को दैवीय शक्तियों से निर्मित दिशा माना गया है क्योकि इस दिशा का प्रतिनिधित्व स्वयं दैवीय शक्तियां ही करती हैं।


दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेय कोण)

दक्षिण और पूर्व दिशा के बीच का स्थान आग्नेय कोण के नाम से जाना जाता है। दक्षिण-पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व अग्नि करती है। इसलिए इस दिशा में विशेष ऊर्जा रहती है।


दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्य कोण)

दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच के स्थान को नैऋत्य दिशा का नाम दिया गया है। दक्षिण-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व पृथ्वी तत्व करता है। इसीलिए यहां प्लांट रखना बहुत शुभ होता है।


उत्तर-पश्चिम दिशा (वायव्य कोण)

उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच के स्थान को वायव्य दिशा के नाम से जाना जाता है. उत्तर-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व वायु करती है। इस वजह से यहां खिड़की या रोशनदान का होना बहुत शुभ रहता है।

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